भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखने का संकेत दिया है। ट्रम्प ने भारत पर 25% टैरिफ और रूसी तेल और हथियारों की खरीद के लिए अतिरिक्त दंड लगाने की धमकी दी थी, ताकि रूस पर यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए दबाव बनाया जा सके। हालांकि, भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि तेल खरीद की नीति में कोई बदलाव नहीं होगा।
मुख्य बिंदु:
- भारत की स्थिति:भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत और रूस के बीच “स्थिर और समय-परीक्षित साझेदारी” है। उन्होंने कहा, “हमारी ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हितों और वैश्विक बाजार की उपलब्धता पर आधारित है।” दो वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि सरकार ने तेल कंपनियों को रूसी आयात कम करने का कोई निर्देश नहीं दिया है।
- ट्रम्प की धमकी:ट्रम्प ने 14 जुलाई 2025 को घोषणा की थी कि रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा, जब तक कि रूस 7-9 अगस्त तक यूक्रेन के साथ शांति समझौता नहीं करता। 1 अगस्त 2025 को, ट्रम्प ने कहा कि उन्हें सुनने में आया है कि भारत ने रूस से तेल खरीद बंद कर दी है, जिसे उन्होंने “अच्छा कदम” बताया, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इस दावे को खारिज कर दिया।
- रूस से तेल आयात का महत्व:भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश, अपनी 85% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद, भारत ने रूस से सस्ते तेल का लाभ उठाया, और अब रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जो 2024-25 में लगभग 35% आपूर्ति प्रदान करता है (लगभग 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन)। रूसी तेल की छूट ने भारत को वैश्विक तेल की कीमतों को नियंत्रित करने और मुद्रास्फीति से बचाने में मदद की है। एक भारतीय अधिकारी ने कहा, “अगर भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो वैश्विक तेल की कीमतें मार्च 2022 में 137 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो सकती थीं।”
- चुनौतियाँ और रणनीति:कुछ भारतीय सरकारी रिफाइनरियों (जैसे इंडियन ऑयल कॉर्प, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम) ने जुलाई 2025 में रूसी तेल की खरीद कम की थी, क्योंकि छूट कम हो गई थी और यूरोपीय संघ की नई प्रतिबंधों के कारण संवेदनशीलता बढ़ गई थी। हालांकि, निजी रिफाइनरियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी रूसी तेल खरीदना जारी रखे हुए हैं। रूसी तेल को बदलना महंगा और जटिल है, क्योंकि भारत की रिफाइनरियां रूस के भारी और सल्फर युक्त तेल के लिए कॉन्फ़िगर की गई हैं। मध्य पूर्व (जैसे सऊदी अरब) से तेल महंगा है, और ओपेक+ की “एशियाई प्रीमियम” नीति लागत बढ़ाती है।
- भारत का तर्क:भारत का कहना है कि उसकी तेल खरीद अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप है और G7-EU के मूल्य-सीमा तंत्र के तहत वैध है। भारत ने रूसी तेल खरीदकर वैश्विक आपूर्ति को स्थिर रखने में मदद की है, जिससे तेल की कीमतें नियंत्रित रहीं। विदेश सचिव विक्रम मिश्रा ने ट्रम्प की धमकियों को “दोहरे मापदंड” करार दिया, क्योंकि यूरोपीय संघ के कुछ देश भी रूसी ईंधन आयात करते हैं।
- आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव:भारत और अमेरिका के बीच 44 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है, जिसे ट्रम्प कम करना चाहते हैं। रूसी तेल पर भारत की निर्भरता इस व्यापार समझौते को जटिल बना रही है। भारत रूस के साथ अपनी दीर्घकालिक साझेदारी को महत्व देता है, जिसमें हथियारों और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान शामिल है। ट्रम्प की टिप्पणियों, जैसे भारत और रूस को “मृत अर्थव्यवस्थाएं” कहना, ने भारत में तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है।