को-लेंडिंग पर जीएसटी नहीं हटेगा! राजस्व विभाग ने सिफारिश को नामंजूर किया

राजस्व विभाग ने वाणिज्यिक बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में को-लेंडिंग से जुड़ी गतिविधियों पर 18 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) समाप्त करने की सिफारिश को खारिज कर दिया है। यह सिफारिश भारतीय स्टेट बैंक की अध्यक्षता वाली समिति ने दी थी।

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘राजस्व विभाग बैंकों और एनबीएफसी के बीच को-लेंडिंग पर जीएसटी शुल्क हटाने के लिए तैयार नहीं हुआ है। हम इस मुद्दे के समाधान के लिए संभावित तरीकों को खोजेंगे।’ वित्तीय सेवा विभाग ने मई 2024 में एसबीआई से को-लेंडिंग मुद्दे के समाधान के लिए समिति बनाने को कहा था।

एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘इस मुद्दे की जांच के दौरान जानकारी मिली कि को-लेंडिंग व्यवस्था के लिए बैंकों और एनबीएफसी के बीच कई तरह के समझौते हुए हैं। फिटमेंट समिति का विचार था कि इस मामले में कोई भी फैसला लेने से पहले इन समझौतों के ढांचे/लागू करने के तरीके की जांच करने की आवश्यकता है।’

एनबीएफसी का प्रतिनिधित्व करने वाली फाइनैंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (एफआईडीसी) ने भी बीते साल नवंबर में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के अध्यक्ष को पत्र भेजकर जीएसटी लगाए जाने के खिलाफ तर्क दिए गए थे।

पत्र में कहा गया था, ‘इस समझौते के तहत एक को-लेंडर दूसरे को कोई वि​शिष्ट सेवा नहीं मुहैया करवाता है। इसकी जगह वे सामूहिक रूप से उधारी लेने वाले को ऋण मुहैया करवाते हैं। इस क्रम में ब्याज दरों में अंतर संयुक्त कार्रवाई में उनकी भूमिकाओं और जोखिम को प्रदर्शित करता है। लिहाजा एनबीएफसी के अतिरिक्त ब्याज वसूलने को सेवा शुल्क नहीं माना जाना चाहिए और इस पर जीएसटी नहीं लगना चाहिए।’

इस को-लेंडिंग मॉडल के अंतर्गत एनबीएफसी को कम से कम 20 प्रतिशत व्यक्तिगत ऋण अपने खाते में रखने की जरूरत होती है जबकि शेष बैंक रखते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को आवास वित्तीय कंपनियों सहित एनबीएफसी के साथ को-लेंड या को-ओरिजिनेट करने की इजाजत दी है। इससे वे अर्थव्यवस्था में वंचित क्षेत्र को नकदी का प्रवाह बढ़ा सकते हैं। मानदंडों के अनुसार एनबीएफसी को व्यक्तिगत ऋण में न्यूनतम 20 प्रतिशत हिस्सेदारी अपने खाते में रखनी होती है। इस समिति की अध्यक्षता एसबीआई के उप प्रबंध निदेशक सुरेंद्र राणा ने की थी। इस समिति में बैंकिंग क्षेत्र से पंजाब नैशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि शामिल थे। इसके अलावा समिति में फाइनैंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (एफआईडीसी) सहित एनबीएफसी के तीन प्रतिनिधि थे।

क्रिसिल रेटिंग्स का अनुमान है कि एनबीएफसी का को-लेंडिंग पोर्टफोलियो जून 2024 तक 1 लाख करोड़ रुपये पहुंच जाने का अनुमान है और मध्यम अवधि में सालाना आधार पर इसमें 35 – 40 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल हुई है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘यह तर्क दिया गया है कि ब्याज दरों में अंतर एनबीएफसी की कोष जुटाने की अधिक लागत को प्रदर्शित करता है और एनबीएफसी बैंकों को कोई अतिरिक्त वि​शिष्ट सेवा मुहैया नहीं कराती है। यह संयुक्त कार्रवाई ऋण मुहैया करवाने के लिए है और ‘अतिरिक्त ब्याज’ असल में ब्याज आय है न कि कोई सेवा शुल्क।’

पीडब्ल्यूसी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 23 में को-लेडिंग उद्योग ने 47,000 से 52,000 करोड़ रुपये के आसपास ऋण दिया। इसके अगले पांच वर्षों में पांच गुना बढ़कर 2,000-2,500 अरब रुपये होने का अनुमान है। इस पोर्टफोलियो में करीब 34 फीसदी व्यक्तिगत ऋण है और यह उपभोक्ताओं की मजबूत मांग को प्रदर्शित करता है। यह व्यक्तिगत ऋण असुरक्षित वित्त विकल्प में आता है। इस पोर्टफोलियो में आवास ऋण 20 फीसदी है जो रियल एस्टेट में महत्त्वपूर्ण निवेश को प्रदर्शित करता है। इस क्रम में स्वर्ण ऋण और एमएसएमई को असुरक्षित ऋण 13 फीसदी है। वाहन ऋण की हिस्सेदारी 12 फीसदी है।

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