ईरान और इजरायल के बीच संबंधों का इतिहास जटिल रहा है, जिसमें कभी गहरी दोस्ती थी, जो बाद में दुश्मनी में बदल गई। 1948 में इजरायल के गठन के बाद, ईरान दूसरा मुस्लिम-बहुल देश था (तुर्की के बाद) जिसने इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। 1950 से 1979 तक, विशेष रूप से मोहम्मद रजा शाह पहलवी के शासनकाल में, दोनों देशों के बीच मजबूत रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक संबंध थे।
दोस्ती का दौर (1950-1979):
1. रणनीतिक गठजोड़: दोनों देशों ने अरब देशों, खासकर मिस्र और इराक, को साझा खतरे के रूप में देखा। इजरायल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन की “परिधि गठबंधन” (Alliance of the Periphery) नीति के तहत, ईरान को गैर-अरब शक्ति के रूप में इजरायल का स्वाभाविक सहयोगी माना गया।
2. आर्थिक और सैन्य सहयोग: ईरान इजरायल को तेल की आपूर्ति करता था, जो इजरायल की औद्योगिक और सैन्य जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण था। दोनों देशों ने संयुक्त रूप से ईलात-अश्केलोन पाइपलाइन के माध्यम से तेल व्यापार किया। इजरायल ने ईरान को हथियार, तकनीक और कृषि उत्पाद प्रदान किए।
3. खुफिया सहयोग: ईरान की खुफिया एजेंसी SAVAK को इजरायल की मोसाद से प्रशिक्षण मिलता था। दोनों देशों ने 1958 में तुर्की के साथ मिलकर “ट्राइडेंट” नामक एक खुफिया गठबंधन बनाया, जिसके तहत उन्होंने संयुक्त रूप से इराक के खिलाफ कुर्द विद्रोहियों का समर्थन किया।
4. सांस्कृतिक निकटता: पहलवी शासन ने ईरान की प्राचीन फारसी संस्कृति को बढ़ावा दिया, जो अरब संस्कृति से अलग थी, और यह इजरायल के साथ दोस्ती को उचित ठहराने में मदद करता था। उस समय ईरान में पश्चिमी एशिया की सबसे बड़ी यहूदी आबादी थी।
दोस्ती का आधार:
साझा दुश्मन: दोनों देशों ने कम्युनिस्ट सोवियत संघ और अरब राष्ट्रवादी आंदोलनों (जैसे मिस्र के गमाल अब्देल नासर और इराक के बाथ पार्टी) को खतरे के रूप में देखा।
अमेरिकी समर्थन: दोनों देश अमेरिका के समर्थन से पश्चिमी गठबंधन का हिस्सा थे, जिसने उनकी दोस्ती को और मजबूत किया।
तेल और व्यापार: इजरायल को अरब देशों ने तेल प्रतिबंध लगाया था, इसलिए ईरान का तेल इजरायल के लिए महत्वपूर्ण था। बदले में, इजरायल ने ईरान में निर्माण और इंजीनियरिंग परियोजनाओं में योगदान दिया।
दोस्ती से दुश्मनी की ओर:
ईरान और इज़रायल के बीच कट्टर दुश्मनी का कारण ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय कारकों का जटिल मिश्रण है। इसे समझने के लिए प्रमुख कारणों को संक्षेप में देखते हैं:
1. 1979 की ईरानी क्रांति: 1979 से पहले, शाह के शासन में ईरान और इज़रायल के बीच अच्छे संबंध थे। लेकिन इस्लामी क्रांति के बाद, अयातुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में ईरान ने इज़रायल को “शैतान” और “फिलिस्तीन पर कब्जा करने वाला” घोषित किया। ईरान की नई इस्लामी सरकार ने इज़रायल को मान्यता देना बंद कर दिया और उसे अमेरिका का सहयोगी मानकर विरोध शुरू किया।
2. धार्मिक और वैचारिक मतभेद: ईरान एक शिया-बहुल इस्लामी गणराज्य है, जो इस्लामी क्रांति के सिद्धांतों पर चलता है, जबकि इज़रायल एक यहूदी राष्ट्र है। ईरान की सरकार इज़रायल को इस्लामी दुनिया के खिलाफ एक खतरे के रूप में देखती है, खासकर फिलिस्तीन के मुद्दे पर।
ईरान ने फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी नीति बनाई और इज़रायल को “अवैध कब्जेदार” के रूप में देखता है।
3. फिलिस्तीन-इज़रायल संघर्ष: ईरान फिलिस्तीनी समूहों जैसे हमास और हिजबुल्लाह का समर्थन करता है, जो इज़रायल के खिलाफ हैं। ईरान इन संगठनों को हथियार, प्रशिक्षण और आर्थिक मदद देता है, जिसे इज़रायल अपने लिए खतरा मानता है।
4. क्षेत्रीय वर्चस्व की होड़: मध्य पूर्व में ईरान और इज़रायल दोनों अपनी क्षेत्रीय शक्ति बढ़ाना चाहते हैं। ईरान सीरिया, लेबनान और इराक जैसे देशों में प्रभाव बढ़ा रहा है, जबकि इज़रायल इसे अपने लिए खतरे के रूप में देखता है।
हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी समूहों के जरिए ईरान का लेबनान में प्रभाव इज़रायल को चिंतित करता है।
5. परमाणु कार्यक्रम: ईरान का परमाणु कार्यक्रम इज़रायल के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इज़रायल का मानना है कि अगर ईरान परमाणु हथियार विकसित कर लेता है, तो यह उसकी सुरक्षा के लिए खतरा होगा। इज़रायल ने कई बार ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की धमकी दी है।
6. प्रॉक्सी युद्ध और हमले: दोनों देश सीधे युद्ध से बचते हैं, लेकिन प्रॉक्सी युद्ध (जैसे सीरिया में) और साइबर हमलों के जरिए एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं। इज़रायल ने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों पर हमले किए, जबकि ईरान समर्थित समूहों ने इज़रायल पर हमले किए।
7. अमेरिका का प्रभाव: इज़रायल अमेरिका का करीबी सहयोगी है, जबकि ईरान अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है। यह गठबंधन ईरान-इज़रायल तनाव को और बढ़ाता है।
ईरान और इज़रायल की दुश्मनी धार्मिक विचारधारा, फिलिस्तीन के मुद्दे, क्षेत्रीय वर्चस्व की होड़ और परमाणु कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर आधारित है। 1979 की क्रांति ने इस तनाव को और गहरा किया। दोनों देश एक-दूसरे को अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं, जिससे यह दुश्मनी कट्टर बन गई है।