श्रीनगर जिला प्रशासन ने 13 जुलाई 2025 को मजार-ए-शुहदा (शहीदों का कब्रिस्तान) में जाने की अनुमति सभी राजनीतिक दलों को देने से इनकार कर दिया, जहां 1931 में डोगरा सेना द्वारा मारे गए 22 कश्मीरियों को श्रद्धांजलि देने की योजना थी। यह दिन पहले ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद इसे आधिकारिक अवकाश सूची से हटा दिया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और अन्य दलों ने कब्रिस्तान में जाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन प्रशासन ने इसे ठुकरा दिया और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी।
इस बीच, पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने प्रतिबंधों की आशंका के चलते 12 जुलाई को ही मजार-ए-शुहदा का दौरा कर लिया। उन्होंने शहीदों की कब्रों पर फूल चढ़ाए और प्रार्थना की। इल्तिजा ने एक्स पर पोस्ट किया, “यह जानते हुए कि कल हमें बाहर निकलने से रोका जाएगा, मैंने 13 जुलाई 1931 को लोकतंत्र के लिए अपनी जान देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उनकी याद को जानबूझकर मिटाया जा रहा है, फिर भी उनकी आवाज हर उस कश्मीरी के दिल में गूंजती है जो झुकने से इंकार करता है और उम्मीद रखता है।”
एनसी के प्रवक्ता तनवीर सादिक ने इस फैसले को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि 13 जुलाई कश्मीरियों के लिए ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व का दिन है। उन्होंने कहा, “कोई आदेश हमारी यादों को दबा नहीं सकता, न ही सच्चाई को मिटा सकता है।” कई नेताओं, जिनमें एनसी और पीडीपी के वरिष्ठ नेता शामिल हैं, को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया ताकि वे कब्रिस्तान न जा सकें।
यह विवाद तब और गहरा गया जब कश्मीर के मुख्य मौलवी मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि उन्हें लगातार दूसरे दिन “मनमाने ढंग से” नजरबंद रखा गया। उन्होंने 1931 के शहीदों की बलिदान को याद करते हुए कहा कि उनकी कुर्बानी भुलाई नहीं जा सकती।
इल्तिजा मुफ्ती की इस यात्रा ने प्रशासन के प्रतिबंधों के बावजूद कश्मीरियों की भावनाओं और उनकी ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखने की उनकी कोशिश को उजागर किया।