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भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा – चुनाव आयोग ईवीएम से मतदान डेटा नहीं मिटा सकता

भारत के चुनाव आयोग (ECI) ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर की जांच और सत्यापन के दौरान मतदान परिणामों का डेटा नहीं मिटा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो चुनाव आयोग द्वारा जून 2024 में जारी तकनीकी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को चुनौती देती हैं।

इस SOP को सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले के निर्देश पर जारी किया गया था, जिसमें अदालत ने कहा था कि दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार मतदान परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर लिखित अनुरोध देकर 5% ईवीएम के मतदान डेटा का सत्यापन कर सकते हैं। यह आदेश अप्रैल 2024 में दिया गया था और इसमें कहा गया था कि उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्र में किसी भी 5% ईवीएम का चयन कर सकते हैं।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि तकनीकी SOP में सत्यापन प्रक्रिया के लिए मॉक पोल (प्रायोगिक मतदान) कराने का प्रावधान किया गया था, जिससे ईवीएम से वास्तविक मतदान डेटा, पार्टियों को मिले वोटों की संख्या और मतदान का समय मिटाया जा सकता था।

क्या होता है मॉक पोल?

मॉक पोल ईवीएम के काम करने के तरीके का प्रदर्शन करने की प्रक्रिया है। यह आमतौर पर मतदान के दिन से पहले उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किया जाता है। इस दौरान प्रत्येक मशीन में लगभग 50 वोट डाले जाते हैं और उन्हें वीवीपीएटी (VVPAT) से मिलाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ईवीएम ठीक से काम कर रही है।

कांग्रेस नेता सर्व मित्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मॉक पोल के दौरान ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर और माइक्रोचिप से मतदान डेटा मिटा दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के फैसले का उद्देश्य मतदान डेटा की सत्यता को समझना था, न कि इसे मिटाना।

“डेटा न मिटाएं” – सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने सुनवाई के दौरान कहा कि अप्रैल 2024 के फैसले का मकसद यह था कि इंजीनियर यह जांचें कि ईवीएम में किसी तरह की छेड़छाड़ हुई है या नहीं।

उन्होंने चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह से कहा, “ईवीएम का डेटा न मिटाएं। डेटा को फिर से लोड भी न करें।”

कोर्ट में तीन याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी, जिन्हें हरियाणा कांग्रेस के नेता सर्व मित्र और करण सिंह दलाल, और गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दायर किया था।

ADR के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि चुनाव आयोग केवल मॉक पोल के जरिए माइक्रोकंट्रोलर की जांच कर रहा है, जबकि आवश्यकता यह है कि ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की गहराई से जांच की जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनमें किसी प्रकार की गड़बड़ी या हेरफेर तो नहीं हुई।

चुनाव आयोग के वकील ने ADR और करण सिंह दलाल की याचिकाओं पर आपत्ति जताई और कहा कि उनकी याचिकाएं पहले ही अदालत की एक अन्य पीठ द्वारा निपटा दी गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने करण सिंह दलाल की याचिका खारिज कर दी, लेकिन ADR की याचिका पर 15 दिनों के भीतर फैसला सुनाने की बात कही। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि प्रत्येक ईवीएम के सत्यापन पर लगभग ₹40,000 का खर्च अधिक है और इसे कम किया जाना चाहिए।

सर्व मित्र का मामला

हरियाणा विधानसभा चुनाव के एक सप्ताह बाद, सर्व मित्र ने नौ बूथों की नौ ईवीएम की जांच और सत्यापन के लिए चुनाव आयोग के पास आवेदन किया था। इसके लिए उन्हें प्रति ईवीएम ₹47,200 (कुल ₹4,24,800) का भुगतान करना पड़ा।

हालांकि, मित्र के अनुसार, सत्यापन प्रक्रिया में कई अनियमितताएँ देखने को मिलीं, जिसके चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

सर्व मित्र ने बताया कि उन्हें 9 जनवरी को ज़िला चुनाव अधिकारी शंतनु शर्मा ने सत्यापन प्रक्रिया के लिए बुलाया। लेकिन इस दौरान उन्होंने पाया कि एक ईवीएम का “मूल मतदान डेटा” पहले ही मिटा दिया गया था और उसकी जगह मॉक पोल कराया गया था।

जब मित्र ने ईवीएम और वीवीपीएटी के वास्तविक डेटा की जांच करने की मांग की, तो उन्हें बताया गया कि ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर की “बर्न्ट मेमोरी” (जहां मतदान डेटा संग्रहीत रहता है) की जांच तकनीकी SOP के दायरे में नहीं आती।

इससे असंतुष्ट होकर मित्र ने प्रक्रिया को तुरंत रोकने को कहा और अन्य ईवीएम का मतदान डेटा सुरक्षित रखने की मांग की।

उन्होंने सवाल किया, “मैं इस मॉक पोल का क्या करूँ? मॉक पोल तो मतदान से पहले उम्मीदवारों के एजेंटों की मौजूदगी में होता है। मैं पैसे देकर उसी प्रक्रिया को क्यों देखूं?”

सर्व मित्र ने चुनाव आयोग की SOP को चुनौती देते हुए दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

अगली सुनवाई 3 मार्च को होगी।

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