नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 2023-24 की वित्तीय रिपोर्ट ने बिहार सरकार की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया है, जिसमें नीतीश कुमार सरकार द्वारा 70,877.61 करोड़ रुपये के खर्च का कोई हिसाब नहीं दिया गया है। यह रिपोर्ट 25 जुलाई 2025 को बिहार विधानसभा में पेश की गई।
मुख्य बिंदु:
- उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) की कमी:
- 31 मार्च 2024 तक, सरकार ने 49,649 उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा नहीं किए, जो 70,877.61 करोड़ रुपये के खर्च से संबंधित हैं। इन प्रमाणपत्रों के बिना यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि धनराशि निर्धारित उद्देश्यों के लिए उपयोग हुई या नहीं।
- इससे धन के दुरुपयोग, गबन और हेराफेरी का जोखिम बढ़ गया है।
- विभागों में अनियमितताएं:
- सबसे अधिक बकाया प्रमाणपत्र पंचायती राज (28,154.10 करोड़), शिक्षा (12,623.67 करोड़), शहरी विकास (11,065.50 करोड़), ग्रामीण विकास (7,800.48 करोड़) और कृषि विभाग (2,107.63 करोड़) से संबंधित हैं।
- 9,205.76 करोड़ रुपये के विस्तृत आकस्मिक (DC) बिल भी लंबित हैं, जिनमें 7,120.02 करोड़ रुपये पिछले वित्तीय वर्ष से पेंडिंग हैं।
- वित्तीय प्रबंधन पर सवाल:
- बिहार का 2023-24 का बजट 3.26 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें से 2.60 लाख करोड़ रुपये (79.92%) खर्च हुए, लेकिन केवल 23,875.55 करोड़ रुपये (36.44%) की बचत सरेंडर की गई।
- राज्य का कर्ज 12.34% बढ़ा, जिसमें आंतरिक कर्ज में 13.51% की वृद्धि हुई, जो 28,107.06 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ है।
- विकास दर और आलोचना:
- रिपोर्ट में बिहार की विकास दर 14.47% बताई गई, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
- हालांकि, उपयोगिता प्रमाणपत्रों की अनुपस्थिति और बजट प्रबंधन की कमजोरियों ने सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं।
- राजनीतिक प्रतिक्रिया:
- विपक्ष ने इसे घोटाला करार दिया है और नीतीश सरकार पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया है।
- कुछ X पोस्ट्स में इसे “दिनदहाड़े लूट” और “संवैधानिक नियंत्रण का टूटना” बताया गया।