हरियाणा और पंजाब में भूजल की गंभीर गुणवत्ता संकट,

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा इस सप्ताह जारी वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट-2024 में हरियाणा और पंजाब में भूजल गुणवत्ता में गंभीर गिरावट का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, कई जिलों में भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट और विद्युत चालकता (EC) की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा और कृषि के लिए बढ़ती चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

फ्लोराइड प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय

रिपोर्ट में बताया गया है कि हरियाणा और पंजाब उन राज्यों में शामिल हैं जहाँ भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर की सहनशील सीमा से अधिक पाई गई है।

हरियाणा में जिंद, सोनीपत, भिवानी, सिरसा और पानीपत जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। वहीं, पंजाब के बठिंडा, मानसा और फाजिल्का जिलों में यह समस्या गंभीर रूप से उभरकर सामने आई है।

इसके अलावा, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे राज्यों में भी भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक पाई गई है, जिससे यह राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक समस्या बन गई है।

नाइट्रेट प्रदूषण: अत्यधिक उर्वरकों के उपयोग का दुष्प्रभाव

फ्लोराइड के अलावा, भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कृषि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण हरियाणा और पंजाब में नाइट्रेट का स्तर 45 मिलीग्राम प्रति लीटर की सुरक्षित सीमा से अधिक हो गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना में 40% से अधिक नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा अनुशंसित सीमा से अधिक पाई गई।

उच्च नाइट्रेट स्तर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है, विशेष रूप से शिशुओं में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ (मेटहेमोग्लोबिनेमिया) का कारण बन सकता है।

विद्युत चालकता का उच्च स्तर: खारे पानी की समस्या

हरियाणा और पंजाब सबसे अधिक विद्युत चालकता (EC) प्रदूषण वाले राज्यों में शामिल हैं, जहाँ कई जिलों में भूजल में 3000 माइक्रोसीमेंस प्रति सेंटीमीटर की अनुमेय सीमा से अधिक EC दर्ज की गई है।

हरियाणा के सिरसा, हिसार, भिवानी, सोनीपत, जिंद और गुरुग्राम सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं। वहीं, पंजाब के फाजिल्का, बठिंडा और मुक्तसर जिलों में भी स्थिति चिंताजनक है।

विद्युत चालकता भूजल में खनिजों की उपस्थिति और उसकी लवणता को मापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। भूजल का अत्यधिक दोहन और सिंचाई के लिए अत्यधिक उपयोग इसकी गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी कम हो रही है।

मानसून के प्रभाव और भूजल संकट से निपटने के सुझाव

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मानसून के दौरान भूजल पुनर्भरण (Recharge) से कुछ क्षेत्रों में प्रदूषण स्तर अस्थायी रूप से कम हो जाता है, लेकिन बढ़ता सतही जल प्रवाह (Runoff) कई क्षेत्रों में नाइट्रेट प्रदूषण को बढ़ा सकता है।

रिपोर्ट ने सतत कृषि पद्धतियों, उन्नत अपशिष्ट जल प्रबंधन और भूजल पुनर्भरण की बेहतर तकनीकों को अपनाने की सिफारिश की है ताकि इस संकट से निपटा जा सके।

भूजल गुणवत्ता संकट पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत

भूगोल के पूर्व प्रोफेसर महाबीर जगलान ने ThePrint से बात करते हुए कहा कि यदि तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो यह जल गुणवत्ता संकट हरियाणा और पंजाब के सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि अर्थव्यवस्था पर गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

उन्होंने बताया कि, “हरियाणा के ट्यूबवेल-आधारित सिंचित क्षेत्रों में भूजल गुणवत्ता एक प्रमुख पर्यावरणीय स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है और पिछले दो दशकों से लगातार खराब हो रही है।”

उन्होंने इसके पीछे प्रमुख कारण बताए:

अत्यधिक जल दोहन – विशेष रूप से दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा में धान-गेहूं फसल चक्र के कारण।

रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग – मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन और फॉस्फेट उर्वरकों का अनियंत्रित प्रयोग।

भूजल चक्र और भू-रसायन में बदलाव – अधिक जल दोहन से भूमिगत खतरनाक यौगिकों का रिसाव बढ़ रहा है, जिससे नाइट्रेट, फ्लोराइड और घुले हुए लवणों की मात्रा बढ़ रही है।

उन्होंने यह भी बताया कि हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में प्राकृतिक रूप से अधिक लवणीय मिट्टी के कारण भूजल में खारापन बढ़ गया है। इसके अलावा, गेहूं-धान वाले क्षेत्रों में नाइट्रेट का स्तर अधिक पाया गया है, जबकि कुछ जगहों पर अल्प गहराई वाले जलभृत (shallow aquifers) में आर्सेनिक की मात्रा अधिक है।

समाधान: फसल विविधीकरण और जल संरक्षण की सख्त जरूरत

महाबीर जगलान के अनुसार, भूजल के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए फसल विविधीकरण (Crop Diversification) को बढ़ावा देना अनिवार्य है।

उन्होंने कहा, “राज्य को गेहूं-धान फसल चक्र से बाहर निकलने के लिए प्रभावी योजनाएं लागू करनी होंगी। किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी और निश्चित कीमतें मिलनी चाहिए ताकि वे गेहूं-धान की खेती से हटकर अन्य फसलों की ओर बढ़ सकें।”

उन्होंने यह भी कहा कि CGWB की यह रिपोर्ट एक ‘वेक-अप कॉल’ है, और हरियाणा, पंजाब तथा अन्य राज्यों को सतत जल प्रबंधन नीतियाँ लागू करनी होंगी ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और स्वच्छ भूजल सुनिश्चित किया जा सके।

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