65 साल की उम्र में, बोमन ईरानी ने ‘द मेहता बॉयज़’ के साथ निर्देशन में कदम रखा, जो एक गहरी, संवेदनशील पिता-पुत्र की कहानी है। यह फिल्म खूबसूरती से दिखाती है कि कैसे हमारे सबसे करीबी रिश्ते ही अक्सर सबसे जटिल और उलझे हुए होते हैं, जिन्हें समझना और स्वीकार करना आसान नहीं होता।
‘द मेहता बॉयज़’ की कहानी अमय (अविनाश तिवारी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो मुंबई में एक युवा आर्किटेक्ट है और अपने करियर में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसे कुछ दिनों के लिए अपने 71 वर्षीय पिता शिव के साथ रहना पड़ता है, जिनसे उसका रिश्ता हमेशा से असहज और तनावपूर्ण रहा है।
शिव की पत्नी और अमय की मां शिवानी की अचानक मृत्यु के बाद, वर्षों से दूर हो चुके मेहता पिता-पुत्र फिर से एक साथ आते हैं। उनके बीच की एकमात्र कड़ी है अमरिका में रहने वाली बड़ी बहन अनु, जो अपने विधवा पिता को अपने साथ फ्लोरिडा ले जाना चाहती है। लेकिन आखिरी समय में योजना विफल हो जाती है, और शिव को मजबूरन अमय के खराब हालत वाले मुंबई के अपार्टमेंट में रहना पड़ता है। इसी दौरान, वर्षों की नाराजगियां, अधूरी अपेक्षाएं और भावनात्मक दूरी धीरे-धीरे खुलकर सामने आती हैं।
फिल्म को बोमन ईरानी और ऑस्कर विजेता पटकथा लेखक अलेक्जेंडर डिनेलारिस (Birdman) ने लिखा है। यह एक संवेदनशील, खूबसूरती से बनाई गई और शानदार अभिनय से सजी फिल्म है।
अभिनय की उत्कृष्टता
अविनाश तिवारी ने अमय के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। अमय का संघर्ष न केवल अपने पिता के साथ है, बल्कि अपने बॉस (सिद्धार्थ बसु) और सहकर्मी-गर्लफ्रेंड ज़ारा (श्रेया चौधरी) की अपेक्षाओं को भी पूरा करने का दबाव उस पर है। वे दोनों मानते हैं कि अमय खुद को कम आंकता है और उससे कहीं अधिक कर सकता है।
बोमन ईरानी भी कमाल के हैं, एक जिद्दी बुजुर्ग पिता के रूप में, जो कभी एक टाइपिंग स्कूल चलाते थे और क्रिकेट के दीवाने हैं। जब हम उनसे पहली बार मिलते हैं, तो वे अपनी आत्मा के साथी और जीवनसंगिनी के अचानक चले जाने से सदमे में हैं। उनकी दुनिया अब खाली और बिखरी हुई लगती है।
महिलाओं की दमदार भूमिका
फिल्म में पुरुष किरदारों के इर्द-गिर्द कहानी जरूर घूमती है, लेकिन महिला किरदार भी प्रभावी हैं। श्रेया चौधरी ने अमय की सहकर्मी और उसकी जिंदगी में संतुलन बनाए रखने वाली शख्सियत की भूमिका बेहतरीन ढंग से निभाई है।
लेकिन फिल्म की असली चमक पूजा सरूप हैं, जो अमय की एनआरआई बहन अनु का किरदार निभा रही हैं। वह परिवार की अकेली महिला सदस्य हैं, जो अपने पिता और भाई के बीच शांति बनाए रखने की कोशिश करती हैं। उनकी भूमिका सीमित होते हुए भी वे अपनी गहरी छाप छोड़ जाती हैं।
फिल्म की बारीकियां और गहराई
‘द मेहता बॉयज़’ सिर्फ अभिनय के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी बारीकियों और डिटेलिंग के लिए भी याद रखी जाएगी।
अमय के बिखरे हुए अपार्टमेंट और उसकी सजी-धजी अलमारी के बीच का अंतर उसकी आंतरिक स्थिति और बाहरी छवि को दर्शाता है।
उसकी बेडसाइड फोटो में वह अपनी मां और बहन के साथ मुस्कुराते हुए दिखता है, लेकिन उसमें उसके पिता की गैरमौजूदगी बहुत कुछ कह जाती है।
शिव का सुनील गावस्कर के हस्ताक्षर वाला बैट दीवार पर टंगा है, जो उनकी क्रिकेट के प्रति दीवानगी दिखाता है।
पिता-पुत्र के रिश्ते के तनाव को दिखाने के लिए बार-बार घर की लाइट्स का ऑन-ऑफ होना एक बेहतरीन रूपक के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
शिव का हर बार गाड़ी चलाते वक्त हैंडब्रेक पर हाथ रखना, यह दर्शाता है कि भले ही बेटे ने गाड़ी की स्टेयरिंग पकड़ ली हो, लेकिन नियंत्रण अभी भी पिता के हाथ में है।
शिव का अमय के लिए खाना बनाना और उसका खाली फ्रिज भरना, उनके रिश्ते की गहराई को दर्शाता है, भले ही वे एक-दूसरे से सीधे तौर पर प्यार का इज़हार न करें।
मुंबई की आत्मा को दर्शाती फिल्म
116 मिनट लंबी यह फिल्म मुंबई की वास्तविकता को भी खूबसूरती से दिखाती है—भीड़-भाड़ भरे घर, अकेलेपन से जूझते लोग, बढ़ती महत्वाकांक्षाएं, महंगे बिल, कंक्रीट के जंगल, और न रुकने वाली बारिश।
फिल्म एक बड़ा सवाल भी उठाती है—आधुनिक आर्किटेक्चर में मौलिकता और सुंदरता की कमी। अमय, जो एक आर्किटेक्ट है, उसी शहर में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है, जहां रचनात्मकता को अक्सर व्यावसायिकता के नीचे दबा दिया जाता है।
असली कारणों को अछूता छोड़ती कहानी
हालांकि फिल्म पिता-पुत्र के जटिल रिश्ते को गहराई से टटोलती है, लेकिन यह कभी स्पष्ट नहीं करती कि उनके बीच इतनी दूरी क्यों आई। क्या कोई बड़ा झगड़ा हुआ था? या यह सिर्फ अहसासों की अनकही परतें हैं जो समय के साथ बढ़ती चली गईं?
शायद यही फिल्म की खूबसूरती है—हर रिश्ते की जड़ में एक बड़ी घटना नहीं होती, बल्कि कई छोटी-छोटी अनकही बातें, अधूरे संवाद, और पीढ़ियों के बीच का मानसिक अंतराल ही रिश्तों में दूरियां पैदा कर देता है।
‘द मेहता बॉयज़’ एक संवेदनशील, दिल को छू लेने वाली फिल्म है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे अपने करीबी रिश्ते क्यों इतने उलझे हुए होते हैं।
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